Tuesday, May 14, 2013

मुक्तक : 213 - आहिस्ता-आहिस्ता औरत



आहिस्ता-आहिस्ता औरत निकलेगी पर्दों से ॥
उस दिन आगे-आगे होगी आगे के मर्दों से ॥
आजिज़ आ ठानेगी जिस दिन छुटकारा पाने की ,
जुल्म-ओ-सितम से , बंदिश से , लाचारी से , दर्दों से ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...