Thursday, May 23, 2013

मुक्तक : 227 - निकट स्वादिष्ट भोजन


निकट स्वादिष्ट भोजन के भी उपवासा रखा हमको ॥
विकट दुर्भाग्य ने बरसात में प्यासा रखा हमको ॥
कभी भर दोपहर में जेठ की रेती पे नंगे पग ,
अहर्निश बर्फ पे कई पूस नागा सा रखा हमको ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...