जैसे कि दिल लगा के किताबात तुम पढ़ो ,
कब मेरा हालेदिल मेरी आँखों में पढ़ोगे ?
मेरे तो रोम-रोम में रग-रग में बसे तुम ,
कब मुझको अपने दिल की पनाहों में रखोगे ?
जैसे कि नाम जपते हैं राधा का कन्हैया ,
रटती हैं राधिका भी किशन वंशीबजैया ,
मैं भी तुम्हें उन्हीं की तरह याद हूँ करता ,
क्या तुम भी मुझको ऐसे कभी याद करोगे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
जैसे कि नाम जपते हैं राधा का कन्हैया ,
रटती हैं राधिका भी किशन वंशीबजैया ,
मैं भी तुम्हें उन्हीं की तरह याद हूँ करता ,
क्या तुम भी मुझको ऐसे कभी याद करोगे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
क्या कहने बहुत ही बेहतरीन...
धन्यवाद ! Rajendra Kumar जी !
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