Sunday, May 12, 2013

मुक्तक : 206 - जैसे कि दिल


जैसे कि दिल लगा के किताबात तुम पढ़ो ,
कब मेरा हालेदिल मेरी आँखों में पढ़ोगे ?
मेरे तो रोम-रोम में रग-रग में बसे तुम ,
कब मुझको अपने दिल की पनाहों में रखोगे ?
जैसे कि नाम जपते हैं राधा का कन्हैया ,
रटती हैं राधिका भी किशन वंशीबजैया ,
मैं भी तुम्हें उन्हीं की तरह याद हूँ करता ,
क्या तुम भी मुझको ऐसे कभी याद करोगे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Rajendra kumar said...

क्या कहने बहुत ही बेहतरीन...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Rajendra Kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...