Saturday, May 11, 2013

89 : ग़ज़ल - मैं समझता था उन्हें



मैं समझता था उन्हें आह ! हक़ीक़त वाले ।।
झूठ थे , जितने थे ख़त उसके मोहब्बत वाले ।।1।।
देखने में तो मसीहा की तरह लगता था ,
काम करता था मगर सिर्फ़ सफ़ाहत वाले ।।2।।
बात करता था हमेशा ही वो जीने वाली ,
दिल में रखकर के ख़यालात क़यामत वाले ।।3।।
उसने तनख़्वाह दी आसान सहज कामों की ,
काम लेकर के बड़े सख़्त मशक़्क़त वाले ।।4।।
जिसके लायक़ था वही ओहदा उसने पाया ,
सारे क़ाबिल तो नहीं होते यों क़िस्मत वाले ।।5।।
पहले तो बख़्श ही देते थे ख़ता कैसी भी ,
आज दुनिया में कहाँ दोस्त मुरव्वत वाले ?6।।
अब जिरह मुझसे वो गूँगा भी बहुत करता है ,
उसमें तेवर न पनपते हों बग़ावत वाले ?7।।
छुपके करता था ; लिहाज़ अपना वो जब रखता था ,
अब तो आगे ही करे काम नदामत वाले ।।8।।
(सफ़ाहत=नीचता/कमीनापन , नदामत=लज्जा)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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