Saturday, May 4, 2013

मुक्तक : 194 - पिंजरे में


पिंजरे में रह-रहकर सचमुच भूल गया उड़ना ।।
कुछ दिन में तो शायद भूल ही जाऊँगा चलना ।।
जब नामुम्किन ही है आज़ादी तो सोचूँ मैं ,
सीख लिया जाए अब क़ैद में ही खुलकर रहना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...