Saturday, May 18, 2013

मुक्तक : 220 - क़ुराने पाक


क़ुराने पाक ओ गीता की क़सम खाकर मैं कहता हूँ ॥
जहाँ तक मुझसे बन पड़ता है मैं चुपचाप रहता हूँ ॥
मगर इक हद मुक़र्रर है मेरे भी सब्र की जायज़ ,
न औरों पर सितम ढाऊँ न ख़ुद पर ज़ुल्म सहता हूँ ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...