Saturday, May 25, 2013

91 : ग़ज़ल - कह के आने की गया


कह  के आने की गया आता नहीं ॥
उसके बिन कोई मज़ा आता नहीं ॥
अपनी सच्चाई छिपा कर सब मिलें ,
उससा कोई भी खुला आता नहीं ॥
यों हमारे साथ वो हर वक़्त है ,
देखने में जो ख़ुदा आता नहीं ॥
कोई मजबूरी है यों खुद्दार तो ,
छोड़ कर शर्मो हया आता नहीं ॥
क्या हुई तुझसे ख़ता जल्दी बता ,
तू कभी सर को झुका आता नहीं ॥
हर मुसीबत के लिए तैयार रह ,
कह के कोई ज़लज़ला आता नहीं ॥
मंदिर औ' मस्जिद जहाँ पग-पग पे हों ,
भूलकर वाँ मैकदा आता नहीं ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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