Friday, May 10, 2013

मुक्तक : 203 - हँस हँसके



हँस-हँसके उसने कितनी बार आँख चार की ?
चाबी मगर न भूलकर दी दिल के द्वार की !!
माँगा कुछ उसने तोहफे में था न हमने ख़ुद ,
अपनी ये ज़िंदगानी उसके नाम यार की ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Rajendra kumar said...

आपके मुक्तक बहुत ही मनमोहक होते हैं.यदि आप ब्लॉग पर लेबल वाला गजेट लगा लेते तो सारे मुक्तक एक साथ पढ़ने को मिल जाते.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Rejendra Kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...