Wednesday, May 8, 2013

मुक्तक : 198 - बाल ना नोचता


बाल ना नोचता न सर को धुना करता था ॥
मेरी बकवास भी वो दिल से सुना करता था ॥
जब न मिलती थी तवज्जोह कहीं से मुझको ,
इक वही था जो मुझेआके गुना करता था ॥
(गुना=मानना, महत्व देना)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Sriram Roy जी !

Vandana KL Grover said...

बहुत अलग ..बहुत सुन्दर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Vandana KL Grover जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...