Friday, May 24, 2013

मुक्तक : 230 - कभी भूले जो


कभी भूले जो मेरे साथ तू तनहा सफ़र करता ॥
भले दो डग या मीलों मील का लंबा सफ़र करता ॥
क़सम से सुर्ख़ अंगारों पे तलवारों पे भी चलते ,
मुझे महसूस होता था मैं जन्नत का सफ़र करता ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...