Monday, May 13, 2013

मुक्तक : 210 - हो गए घर घर



हो गए घर-घर पलंग खटिया पुरानी पड़ गई ॥
जबसे छत ढलने लगे टटिया पुरानी पड़ गई ॥
काल ने नख-शिख बदल डाला सकल परिदृश्य का ,
केश लहराने लगे चुटिया पुरानी पड़ गई ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Rajendra kumar said...

चुटिया पुरानी पड़ गयी,बहुत ही सुन्दर.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Rajendra Kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...