Wednesday, May 15, 2013

मुक्तक : 215 - इसके सिवा न



इसके सिवा न और कोई पास था चारा ॥
तब तो लिया है एक खिलौने का सहारा ॥
दिल का गुबार और किस तरह निकालते ,
होता जो कान देके सुनने वाला हमारा ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

Ghanshyam kumar said...

बहुत सुन्दर...

Rajendra kumar said...

बहुत ही अनमोल मुक्तक.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Ghanshyam kumar जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...