Saturday, May 18, 2013

मुक्तक : 221 - पहले के ज़माने


पहले के ज़माने में तो घर घर थे कबूतर ॥
इंसानी डाकिये से भी बेहतर थे कबूतर ॥
इस दौर में वो ख़त-ओ-किताबत नहीं रही ,
सब आशिक़ों पे ज़ाती नामावर थे कबूतर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 






       
 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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