Thursday, May 16, 2013

मुक्तक : 216 - न इक़दम ही नई






न इकदम ही नयी है और न ये सदियों पुरानी है ॥
किसी से क्या कहलवाएँ ख़ुद अपनी मुँहज़बानी है ॥
बड़ी दुश्वारियों से पाके आसानी से खोया उस ,
लम्हा भर इश्क़ की मेरे सनों लंबी कहानी है ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...