Monday, May 20, 2013

मुक्तक : 222 - बादल भरी

बादल भरी दुपहरी में घनघोर हो गए ॥
बारिश हुई तो पेड़-पौधे मोर हो गए ॥
सूखे से हलाकान थे इंसान औ जानवर ,
होकर के तर-बतर मुदित विभोर हो गए ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...