Tuesday, May 14, 2013

मुक्तक : 212 - घर बैठे



घर बैठे मुफ़्त की मैं रोटी नहीं चबाती ॥
भर पाऊँ पेट अपना इतना तो हूँ कमाती ॥
हूँ ग्रेजुएट फिर भी संकोच तब न करती ,
रिक्शा चला-चला जब मैं घर को हूँ चलाती ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...