Wednesday, April 10, 2013

मुक्तक : 145 - चट्टानों से दिखते




चट्टानों से दिखते हो पर हो राखड़ ।।
तुम सूरज से डरने वाले चमगादड़ ।।
बनते हो रहनुमा फ़रिश्ता और ख़ुदा ,
ऊपर प्रेमिल अंदर से मुक्का झापड़ ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...