Wednesday, April 17, 2013

मुक्तक : 168 - मैंने तेरी नाचती


मैंने तेरी नाचती तस्वीर देखी है ॥
दिल में सर ऊँचा उठाती पीर देखी है ॥
वन में जैसे क़ैस ने देखा हो लैला को ,
राँझना ने मानो मरु में हीर देखी है ॥
( क़ैस=मजनूँ , मरु=रेगिस्तान )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Pratibha Verma said...

बिलकुल सही कहा आपने ...
पधारें बेटियाँ ...

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Pratibha Verma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...