Sunday, April 7, 2013

मुक्तक : 140 - मरुथल समस्त


मरुथल समस्त बूँद-बूँद को तरस रहे ।।
सब मेघ जा उधर समुद्र पर बरस रहे ।।
ये देख दानवीर कंघे गंजों के लिए ,
 अंधों को चश्में बाँटने कमर को कस रहे ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...