Wednesday, April 3, 2013

भक्ति गीत : छोड़कर और...................


छोड़कर और सब आस्ताने चले ॥  
अब तेरे दर को हम आज़माने चले ॥
ऐ ख़ुदा आख़िरी तू ही उम्मीद है ,
आर्ज़ू अर्ज़ लेकर मनाने चले ॥
छोड़कर .............................
ज़िंदगी इक हक़ीक़त है चट्टान सी ,
ख़्वाब की हस्ती शीशे के समान सी ,
तुझसे ख़्वाबों की ताबीर होती सुनी ,
सोये सपने पुराने जगाने चले ॥
ऐ ख़ुदा.................................
ज़िंदगी काटते हैं न जीते हैं हम ,
प्यास सुख की है पर दुःख ही पीते हैं हम ,
अब तलक ज़िंदगी ज़िंदगी सी नहीं ,
ज़िंदगी ज़िंदगी सी बनाने चले ॥
ऐ ख़ुदा.................................
मोह के बंधनों में हैं जकड़े हुए ,
छोड़ना चाहकर भी हैं पकड़े हुए ,
कोशिशें कीं मगर हम से टूटी नहीं ,
अब ये ज़ंजीरें तुझसे तुड़ाने चले ॥
ऐ ख़ुदा.................................
तेरे हाथों में सब कुछ है क्या कुछ नहीं ,
हम हैं मुफ़लिस हमारे सिवा कुछ नहीं ,
अपने दामन को फैला के दरवेश हम ,
लेने सुख सम्पदा के ख़ज़ाने चले ॥
ऐ ख़ुदा.................................
आँखें भूखी हैं इनमें नहीं है सबर ,
तेरे दीदार अब भी न पाये अगर ,
सब्र का बाँध न फूट जाये यही ,
तेरे आँचल में आँसू बहाने चले ॥
ऐ ख़ुदा.................................
छोड़कर .............................॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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