Thursday, April 4, 2013

मुक्तक :136 - हैरत अंगेज़


         ( चित्र Google Search से साभार )          
          
         हैरत अंगेज़ ज़बरदस्त खुलासा होते ।।         
 हमने देखा है उधर रोज़ तमाशा होते ।।
तिल को देखा खजूर-ताड़ सा ऊँचा उठते ,
और पर्वत को सिकुड़ राई-रवा सा होते ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

शिव राज शर्मा said...

क्या बात है सर जी । सुंदर

शिव राज शर्मा said...

क्या बात है सर जी । सुंदर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Shiv Raj Sharma जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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