Sunday, April 14, 2013

84 : ग़ज़ल - जिसका डर था वही


जिसका डर था वही आज बात हो गई ।।
रैन पूनम की , मावस की रात हो गई ।।1।।
दिल्लगी के लिए दिल लगाया जिधर ,
वो ही आख़िर शरीके हयात हो गई ।।2।।
दोस्त ने दोस्त को दे दिया जो दग़ा ,
इसमें क्या कुछ तअज्जुब की बात हो गई ?3।।
वो मेरा हाथ क्या छोड़कर चल दिये ,
हर ख़ुशी भी मेरी उनके साथ हो गई ।।4।।
सिर्फ़ हासिल है उनका बदन दिल नहीं ,
जीतकर भी उन्हे मेरी मात हो गई ।।5।।
सिर्फ़ रोने से ऐ ! रोने वाले बता ,
किसकी दुश्वारियों से नजात हो गई ।।6।।
लोग चलने लगे हँसते बतियाते अब ,
मेरी मैयत भी जैसे बरात हो गई ।।7।।
कोई बामन न अब शूद्र कोई रहा ,
अक़्द से दोनों की एक ज़ात हो गई ।।8।।
(अक्द=शादी)
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...