Wednesday, April 10, 2013

मुक्तक : 144 - क़ाबिलीयत


क़ाबिलीयत जितनी ही घटती गयी ।।
हक़ की उतनी ही तलब बढ़ती गयी।।
जबसे दिखना हो गया कम आँख को ,
ताकने की और लत लगती गयी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...