Saturday, April 13, 2013

मुक्तक : 155 - नर्म डंठल


नर्म डंठल की जगह सख़्त तना हो जाना ।।
बिखरे बिखरे से चाहता था घना हो जाना ।।
कोशिशों में तो कसर कुछ न उठा रक्खी थी ,
पर था क़िस्मत में हर इक हाँ का मना हो जाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

1 comment:

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर....
पधारें "आँसुओं के मोती"

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...