Wednesday, April 24, 2013

मुक्तक : 179 - लाख खूँ ख़्वार हो



लाख खूँ ख़्वार हो शैतान हो वली समझे ॥
दोस्त वो है जो अपने दोस्त को सही समझे ॥
दोस्त का चिथड़ा चिथड़ा दूध भी तहे दिल से ,
रबड़ी छैना बिरज का मथुरा का दही समझे ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

4 comments:

दिगम्बर नासवा said...

waah ... kamaal ka muktak ...

Unknown said...

आपकी कवितायेँ अच्छी लगीं , बलात्कारी की आत्मकथा काफी अच्छी लगी इसे और विस्तार मिलाता तो और भी अच्छा होता .
सुधीर सिंह , राष्ट्रीय संयोजक , मंजिल ग्रुप सहय्तिक मंच , भारतवर्ष ,मो-९८६८२१६९५७

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । दिगंबर नासवा जी ।

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद । सुधीर सिंह जी ।

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...