Sunday, April 21, 2013

ग़ज़ल 86 - की है भलाई..............


की है भलाई या इक अच्छी बुराई कर दी ।।
गेहूँ से घुन अलग था जिसकी पिसाई कर दी ।।
वो कर रहा ज़बरदस्ती साथ में था उसके ,
बदले में हमने उसको उसकी लुगाई कर दी ।।
अफ़्वाह से उठे इक तूफ़ान ने जहाँ में ,
इज्ज़त जो थी हिमालय उनकी वो राई कर दी ।।
लेकर उधार चाहा था खीर ही बनाना ,
आकर किसी ने उसमें नीबू-खटाई कर दी ।।
पहले था ख़ूँ के रिश्तों का कुछ लिहाज़ अदब अब ,
बच्चों ने माँ-पिताजी की भी पिटाई कर दी ।।
माँगी न ग़ैर को दे जो इक तवील मुद्दत ,
हमने वो चीज़ अपनी ऐसे पराई कर दी ।।
पिंजरे से इक परिंदे के भागने पर उसको ,
पहले तो पकड़ा फिर पर काटे रिहाई कर दी ।।
जब ओढ़ने को सर्दी में मिल सका न कुछ तो ,
घुटनों को अपने तन की कम्बल-रजाई कर दी ।।
था एक जनवरी को आने का उनका वादा ,
लेकिन उन्होंने आते-आते जुलाई कर दी ।।
भरने को पेट अपना सब बेचकर किताबें ,
बचपन में बंद हमने अपनी पढ़ाई कर दी ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

No comments:

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...