Sunday, April 14, 2013

मुक्तक : 157 - कहने को जमाने में


कहने को जमाने में मेरे दोस्त हैं हज़ार ॥ 

दो चार ही निकलेंगे मगर सच्चे ग़मगुसार ॥ 

मतलब को कुछ तो गुड़ पे मगस जैसे भिनभिनाएँ , 
हो जाते हैं तक़्लीफ़-ओ-मुसीबत में कुछ फरार ॥ 
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...