Monday, April 15, 2013

मुक्तक : 161 - एहसास मेरे मर हैं चुके


एहसास मेरे मर हैं चुके अब तो इस क़दर ॥
बर्फ़ीली हवाओं का न अब लू का हो असर ॥
लगता न कहीं पर भी बिना उसके दिल मेरा ,
जंगल हों मरुस्थल हों कि न्यूयार्क से शहर ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...