Sunday, April 14, 2013

मुक्तक : 160 - कंकड़ भी मुझको


कंकड़ भी मुझको दुःख के लगते हैं पहाड़ से ॥
सुख तिल समान भासते हों चाहे ताड़ से ॥ ,
आनंद उठाएँ जैसे लोग प्यार से सभी ,
तुम वैसे ही उठाओ कष्ट-पीड़ लाड़ से !!
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बहुत सुन्दर

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! अभिषेक कुमार झा अभी जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...