अब न ताक़त न वो चुस्ती न फुर्ती यार रही ॥
उम्रे बावन में अठारह
की न रफ़्तार रही ॥
जिसने काटा था सलाख़ों
को लकड़ियों की तरह ,
वो मेरे जिस्म की तलवार
में न धार रही ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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