Monday, April 29, 2013

मुक्तक :185 - अब न ताक़त


अब न ताक़त न वो चुस्ती न फुर्ती यार रही ॥
उम्रे बावन में अठारह की न रफ़्तार रही ॥
जिसने काटा था सलाख़ों को लकड़ियों की तरह ,
वो मेरे जिस्म की तलवार में न धार रही ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...