Thursday, April 25, 2013

मुक्तक : 180 - क्यों रहते हो


क्यों रहते हो तुम ग़ुस्से से , तने-तने अक्सर ?
क्यों देते फिरते बयान हो , खरे-खरे अक्सर ?
क्या तुमको मालूम न सच के , बड़े बड़े पुतले ,
फूँकें सारे झूठे मिलकर , खड़े-खड़े अक्सर ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...