नर्म डंठल की जगह सख़्त तना हो जाना ।।
बिखरे बिखरे से चाहता
था घना हो जाना ।।
कोशिशों में तो कसर कुछ
न उठा रक्खी थी ,
पर था क़िस्मत में हर इक
हाँ का मना हो जाना ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...
1 comment:
बहुत सुन्दर....
पधारें "आँसुओं के मोती"
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