किस
रंग में ये तूने , रब हमको रँग है डाला ?
कौए तलक चिढ़ाएँ , कह-कह के काला-काला !!1।।
हाँ ! कारसाज़ तुझको , पाकर न हमने सोचा ,
क्या फ़ायदे की मस्जिद , किस काम का शिवाला ?2।।
हमको यूँ ही न समझो , बेकार
में शराबी ,
ग़म या ख़ुशी न हो तो , छूते
नहीं पियाला ।।3।।
जलती है आग दोनों , के पेट
में बराबर ,
इस मुँह से छीनकर उस , मुँह
में न दो निवाला ।।4।।
तमगों को रखके कोई , देता
नहीं उधारी ,
अबके तो हमको देना , इन्आम नक़्द वाला ।।5।।
दरवेश कब से दर पे , दरवेश
के खड़ा है ,
कासा बजाता गाता , इक गीत
दर्द वाला ।।6।।
यूँ उसने अपने दिल
से , हमको किया है ख़ारिज ,
जैसे कि कोई काँटा , आँखों का
है निकाला ।।7।।
इनके भी है मुआफ़िक़ , उनके
भी है मुताबिक़ ,
इक हम हैं इश्क़ जिसको , आए न रास साला ।।8।।
चेहरा न ढाँपना तुम , कुछ
ढूँढ मैं रहा हूँ ,
इस बोगदे में चिनगी , भर
भी नहीं उजाला ।।9।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
सर बहुत अच्छा है
धन्यवाद ! Shiv Raj Sharma जी !
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