Wednesday, January 23, 2013

15. ग़ज़ल : आँखों को उसका अक़्स


आँखों को उसका अक़्स इस क़दर खटक गया ।।  
आईना ख़ु ब ख़ु पटाक से चटक गया ।।
दाँँतों से था पकड़ रखा मगर जहेनसीब ,
मुट्ठी से वक़्त रेत की तरह सटक गया ।।  
ओलों सा आस्माँँ से वो टपक तो था रहा ,
चमगादड़ों सा फिर खजूर पर लटक गया ।।  
तेरे लिए तो दौड़ा था हिरन सा मीलों मील ,
अपने लिए वो चार डग ही चलके थक गया ।।  
ग़द्दार वो नहीं था फ़र्ज़े रहनुमाई में ,
सबको ही ठीक राह जो दिखा भटक गया ।।
सूराख़ वो न जाने कौन सा था जिससे बस ,
दुम ही निकल सकी तमाम तन अटक गया ।।
 -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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