कविता के लिए विषय ढूँढना /
निशानी नहीं है /
कवि होने की /
कविता तो परिभाषित
है /
कवि कर्म रूप में
/
फिर क्यों इतनी
परवाह विषय की /
प्रेरणाओं के
तत्वों की /
कविता लिखने का
संकल्प मात्र /
कविता को जन देगा
/
तू लिख .....और
सुन.......
गोल पत्थर को छील
काट कर /
फ़ुटबाल बना देना /
लम्बोतरे को
डंडा या खम्भा /
या टेढ़े मेढ़े को
साँप बना देना /
मौलिक नहीं नक़ल
होगा /
गोले में गेंद की
कल्पना
बालक भी कर लेगा /
कवि तो सुना है
ब्रह्मा होता है /
अरे ओ शिल्पकार
मज़ा तो तब है
जब तेरे सधे हुए
हाथ /
तेरी छैनी हथौड़ी
/
सुकृत विकृत पत्थर
को/
जो उससे दूर दूर
तक न झलके
वैसा रूपाकार दें
/
और तराशते समय
निकलीं
एक एक छिल्पी /
एक एक किरच /
ये भी निरूपित हों
/
जैसे
घूरे से बिजली /
गंदगी से खाद /
सृजन तो ये है /
तू ऐसा ही कवि
बनना ,
बुनना उधेड़ मत
करना //
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
बहुत खूब !!!
धन्यवाद ! Lekhika M Shlok' जी !
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