Wednesday, January 30, 2013

अगर तुझे कवि बनना है ............


कविता के लिए विषय ढूँढना /
निशानी नहीं है / 
कवि होने की /
कविता तो परिभाषित है /  
कवि कर्म रूप में /
फिर क्यों इतनी परवाह विषय की /
प्रेरणाओं के तत्वों की /
कविता लिखने का संकल्प मात्र /
कविता को जन देगा /
तू लिख .....और सुन.......
गोल पत्थर को छील काट कर /
फ़ुटबाल बना देना /
लम्बोतरे को 
डंडा या खम्भा /
या टेढ़े मेढ़े को 
साँप बना देना /
मौलिक नहीं नक़ल होगा /
गोले में गेंद की कल्पना 
बालक भी कर लेगा /
कवि तो सुना है ब्रह्मा होता है /
अरे ओ शिल्पकार 
मज़ा तो तब है 
जब तेरे सधे हुए हाथ /
तेरी छैनी हथौड़ी /
सुकृत विकृत पत्थर को/ 
जो उससे दूर दूर तक न झलके 
वैसा रूपाकार दें /
और तराशते समय निकलीं 
एक एक छिल्पी /
एक एक किरच /
ये भी निरूपित हों /
जैसे 
घूरे से बिजली /
गंदगी से खाद /
सृजन तो ये है /
तू ऐसा ही कवि बनना ,
बुनना उधेड़ मत करना //

-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

बहुत खूब !!!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Lekhika M Shlok' जी !

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