बार बार
संपादक /प्रकाशक की
''सखेद वापस'' की टिप्पणी
सहित लौटी
रस छंद अलंकार
कथ्य और
सार्थक उद्देश्य से आप्लावित
जैसा कि आप मानते हैं
और मैं आप पर बड़ा विश्वास रखता हूँ
आपकी अनन्य अद्भुत और
नितांत मौलिक काव्य कृति
हफ़्तों महीनों या वर्षों की
कड़ी मेहनत से
बड़े अरमानो से जिसे आपने
तैयार किया था
जब
रद्दी कागजों का
एक पुलिंदा मात्र बनकर रह जाती है
दिलो जान से कवि होकर भी आप
कवि की संज्ञा प्राप्ति से वंचित रह जाते हैं
तब
यदि उसे जला नहीं डालते निराश होकर
तो
आप उसे
यूं ही दे देते हैं
किसी नामी गिरामी कवि या गीतकार को
अथवा बेच देते हैं
चंद रुपयों में
बिना नाम के
अगले ही दिनों वह मचा देती है खलबली
साहित्य जगत में
ध्वस्त कर देती है
बिक्री के सब कीर्तिमान
पूर दिया जाता है उस खरीदार को
पुरस्कारों और नकदी से
वह हो जाता है
रातों रात ध्रुव तारा
आप ज़िन्दगी भर कविताएँ लिखते हैं
उसके नाम से
अपनी आजीविका के लिए
बेचते हैं
लिखते हैं
बेचते हैं
पर उम्र भर
कवि नहीं कहला पाते
खरीदार कवि बन जाते हैं I
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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