गोरा-काला , दुबला-मोटा , नाटा या क़द्दावर ला ।।
सबका क़द जो ऊँचा कर दे , जा ऐसा चारागर ला ।।
यों तो कुतुबमीनार मुझे ऊँचाई समझने काफ़ी है ,
फिर भी खेल-खिलौने वाले से इक एफ़िल टॉवर ला ।।
अदरख का अब स्वाद परखने बन्दर को तो मत रखना ,
पत्थर में हीरे को जो पहचाने वो दीदावर ला ।।
दुश्मन की मोटी गर्दन कटवाने को न छुरी काफ़ी ,
फरसे ,तलवारोंं को घिस-घिसकर पैना करवाकर ला ।।
कुछ चीज़ें सोना-माटी जिस मोल मिलें झटपट ले ले ,
कुछ सामान मगर सौदेबाज़ी करके ठहराकर ला ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
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