Thursday, January 3, 2013

कहानी : राखी की ओट में इश्क


पता नहीं ऐसा क्या है मेरे साथ कि जिन दृश्यों से मैं बचना चाहता हूँ अचानक मेरी आँखों मेँ पड़ जाते हैं और एक बार फिर एक वर्जित दृश्य मेरी आँखों से गुजरा कि जिसे मैं जानता हूँ वह सुनसान मेँ एक ऐसी लड़की से मौका देखकर आलिंगन बद्ध हो रहा था जो मेरी पुख्ता जानकारी के मुताबिक उसकी धर्म बहन थी और वह भी उसे दबोचने मेँ तल्लीन थी। ज़माना बहुत खतरनाक है अतः ऐसे मौके पर हमें उनकी नज़रें बचाकर अवश्य ही चुपचाप खिसक लेना चाहिए खासकर तब जब लड़की न अपनी बहन हो और न प्रेमिका और यदि आप उससे एक तरफा मोहब्बत क्यों न करते हों तब भी ; नहीं तो आप खुद को एक बदचलन से बच जाने का वहीं जश्न मनाने अथवा उसे अपमानित करने खड़े हो जाएँ क्योंकि ऐसे मेँ अक्सर या तो आप पिट-पिटा जाएँगे अथवा दोनों मेँ से कोई न कोई आपको कारण बताकर अवश्य ट्रेन से कट मरेगा। हालांकि मैं जानता हूँ आजकल यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है फर्क सिर्फ इतना है अब पकड़े जाने पर लड़के लड़की शर्मिंदा होकर मौत को गले नहीं लगाते बल्कि अब तो लड़कों के लिए लड़की हथियाने का यह एक फंडा बन चुका है कि दीदी दीदी करके दोस्ती करो और तीर निशाने पर बैठ गया तो सेफली सेफली इश्कबाज़ी , और तो और लड़की के घर मेँ ही घुसकर।
     तो जनाब मेरे उक्त परिचित का प्रकरण कुछ ऐसा ही है और यहाँ मैं उसे एक टाइपया कैरेक्टरबनाकर प्रस्तुत कर रहा हूँ क्योंकि उसके जैसों की कोई कमी नहीं है वह तो कुछ इन घटनाओं से अनभिज्ञ अथवा मासूम लोग हैं जो हैरत करते हैं थू-थू या छिः-छिः करते हैं वरना यह कोई अप्राकृतिक कृत्य नहीं है , हाँ अनैतिक चाहे जितना कह लो , महा-अधर्म कह लो , घोरतम पाप कह लो किन्तु सब कुछ परिस्थितिजन्य और स्वाभाविक।
माना कि वह पड़ोसी था , तो क्या पड़ोसी से रिश्ता जोड़ना ज़रूरी होता है बहन का भाभी का या अन्य ?
क्या बिना रिश्ते के बातचीत जारी नहीं रखी जा सकती ? पहुँच गए साब दीदी-दीदी करके राखी बँधवाने और सामने वाली तो जैसे इनके ही इंतज़ार में राखी लिए बैठी हैं कि कब जनाब ये आयें तो सोलो गाएँ  ‘’ भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना ‘’ जबकि सगा भाई भी साक्षात विराजमान है , जैसे फेस-बुक पर लोग फ्रेंड्स की गिनती बढ़ाने मेँ लगे रहते हैं ये रक्षाबंधन पर अपने भाइयों की गिनती का रिकार्ड तोड़ना चाहती हों। पर मुंहबोला तो मुंहबोला ही होता है न , सभी मुँहबोले थोड़े ही सगे भाई की निगाहों से बहन को देखते हैं ?
जिस दिन से वह लड़की यानि उसका परिवार यहाँ आया था , जनाब देखते ही मर मिटे किन्तु शुरुआत कैसे हो ? खैर साब ! किन्तु लड़की के घर वालों को भी एक दम से विश्वास नहीं कर लेना चाहिए कि अब तो फलाना भाई बन गया है तो चाहे जब आने जाने की छूट दे दी और लो वही हुआ कि आपने तो शुरुआत ही इश्क़ के लिए की थी और ऐसे संबंध तो लंबे सान्निध्य का ही परिणाम होते हैं सो मुंहबोली भी धीरे-धीरे मुंहबोले की हरकतों का मज़ा लेने लगी और यही सब होते होते दूसरा रक्षाबंधन आ गया ,अब काहे की राखी-वाखी। खैर। इस बार लड़की खुद राखी बांधने आई और भाई साहब बचते फिरे किन्तु आखिर कब तक ? बंधवाना ही पड़ी।
आप मेरे परिचित को एकदम से घोर अनैतिक या अधम पशु समझें आपकी मर्ज़ी किन्तु इस टाइप के मुँहबोले भाई समाज मेँ कई हो सकते हैं यहाँ तक कि मैंने तो कहीं पढ़ा है कि बड़े बड़े सेलिब्रिटी साहित्यकार तक जिनसे शुरू शुरू मेँ राखी बंधवाते आए थे बाद मेँ उन्हीं को दुल्हन बना डाला तो उनका भी यही कारण निकला कि भैये ये अनैतिक कार्य आपने क्यों सम्पन्न किया तो वही घिसा पिटा जवाब परिस्थिति साब परिस्थिति।
अब जबकि राखी बांधने के बाद मुंहबोली को मुंहबोले के सामने आना पड़े और बिलकुल जैसे सगे भाई के सामने बिना दुपट्टे के चली आती है , चली आए और लड़ियाने लगे तो मुँहबोले अंधे को तो दो आँखें ही मिल गईं समझो
और फिर धीरे धीरे , हंसी - मज़ाक , धौल - धप्पा ये सब होने लगे तो बात तो बढ़ेगी ही न यही हुआ। इसका यह मतलब नहीं कि मैं इस घटना को क्षम्य समझता हूँ कदापि नहीं , किन्तु आगाह करना चाहूँगा की मुंहबोलों में मेल - मिलाप की मर्यादा होनी ही चाहिए और मेरी इस बात को कोई बोलाया बोलीखुद पर आरोप या संदेह न समझे वरन यह सावधानी के तौर पर जमाने की चाल को देखते हुए मेरी अतिशय विनम्र राय है आगे मेरे बाप का क्या किन्तु रोज़-रोज़ टी.वी. पर ऐसे अनेक अनैतिक कृत्यों की खबरें देख - देख कर मुझे ये बोला’ ‘बोलीका रिश्ता नंबर दो का लगने लगा है अतः क्षमा करें और न जाने क्यों रिश्ते बनाने में हम बड़ी जल्दबाज़ी करते हैं खासकर लड़कियां। लड़का दिखा नहीं कि भैया-भैया , आदमी दिखा नहीं कि अंकल-अंकल। मैं पुरजोर तजवीज करना चाहूँगा कि हमें नए न्यूट्रल सम्बोधन गढ़ने चाहिए ताकि यदि कल कोई ऐसा वैसा कांड हो जाए तो इसे अवश्यंभावी परिणाम समझकर छोड़ा जा सके किन्तु अब जबकि मैंने बोले को बोली के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख ही लिया तो क्या मैं शांत रह सकता था।
मैं चुपचाप चला तो आया किन्तु मन में खलबली मची थी। मैं उससे कारण पूछ सकता था किन्तु मैंने जो अनुमान लगाए थे वही सच थे कि उन्हें अक्सर बेझिझक अकेले में मिलने के पर्याप्त अवसरों ने इस अनैतिकता कांड को प्रेरित किया था। मैं सोच रहा था कि क्या उसमें और मुझमें कोई फर्क है ? हालांकि वहाँ वह एक निश्चित योजनानुसार राखी बँधवाने गया था और लड़की बड़ी थी और यहाँ मैं लड़की से पूरे तेरह साल बड़ा था और वह मुझे राखी बांधने आई थी।
कुँवारा था मैं पी-एच.डी. कर रहा था , अपने अपने उसूल होते हैं और उन्ही के तहत शादी कभी न करने का ख्याल रखता था। वैसे भी एक दम नीरस टाइप का आदमी था , बुक-वर्म , पढ़ाई-लिखाई में टॉप। कॉलेज में पढ़ाता था और जिस घर में किराये से रह रहा था उसके मालिक की वह सबसे छोटी बेटी थी जिसका एक भी भाई नहीं था शायद इसीलिए वह लगभग सभी किराएदार लड़कों को राखी बांधती आई थी और इसी तारतम्य में मुझे भी बांध डाली और भला मुझे क्या उज्र होता क्योंकि मेरी नज़रों में तो अभी तक सभी लड़कियां माताएँ-बहनें ही थीं। लेकिन इस बार मामला उलट था। दरअसल मैं जैसी शक्लोसूरत ,गुण - स्वभाव की लड़की चाहता था वह मुझे अब तक मिली ही न थी या यूं कहूँ कि किसी ने मेरे दिल की घंटी नहीं बजाई थी किन्तु इस लड़की से बेहिचक राखी बँधवा लेने के कुछेक महीने बाद मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं उसके प्रति एक तगड़ा खिंचाव महसूस कर रहा हूँ , कारण कि वह मनमाफिक थी किन्तु कैसे कहूँ बैरन राखी दीवार बन गई थी। मैं उसका जायजा ले रहा था। कहीं से भी वह मुझे आशिक बनाने को तैयार नहीं लग रही थी अतः कभी हिम्मत न पड़ी। मैं जितना ज्यादा उसे चूमना चाटना दबोचना चाहता था उससे उल्स्त व्यवहार मैं करता था कि बचता फिरता था कि कहीं उसके साथ ऐसा वैसा कुछ कर न बैठूँ और इसी जद्दोजहद में मैंने वह घर छोड़ दिया किन्तु आना जाना बना रहा। वह मुझे बिलकुल सगे भाई की तरह देखती और मैं अपने कमरे पर आकर कल्पना में उसके साथ रंगरलियाँ मनाता। मैं उसका दीवाना हो चुका था और आज वह अकेली ही मेरे रूम पर उसके पापा के साथ दूसरी बार राखी बांधने आई थी। पापा उसे छोड़कर चले गए। बिलकुल सगे भाई की तरह मैंने इस बार भी बिना उज्र किए राखी बंधवा ली जबकि दिल चाहता था उसकी मांग भर दूँ।
मैं बिलकुल नहीं चाहता था की मेरे मन मैं उसके प्रति ऐसे घृणित अनैतिक विचार आयें क्योंकि जो भी हो सामाजिक दृष्टि से वह मेरी बहन थी किन्तु यह मानव मन की कमजोर प्रकृति है कि वह ऐसे सम्बन्धों में वह बहक भी सकता है। उसकी सभी बहनों की शादी बहुत ही अच्छे परिवारों में हुई थी। एम.ए. करने के बाद उसकी भी शादी होने वाली थी एक फ़र्स्ट क्लास ऑफिसर के साथ किन्तु दुर्भाग्य देखिये कि एक दिन घर में घुसकर उसका सामूहिक बलात्कार हो गया और वह मरते मरते बची। अपराधियों को केवल लंबे सश्रम कारावास की सज़ा हो गयी किन्तु रिश्ता टूट गया और उसका घर से निकलना लगभग बंद सा हो गया। इस बार मैं खुद ही जब उसके घर राखी बंधवाने आया तो दिल पर एक घूंसा सा लगा उसे देखकर- एक रसभरी गुलबदन नार सूख कर काँटा हो गयी थी। राखी तो खैर बंधवानी ही थी किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि मेरा प्यार कम हो चुका था बल्कि अब तो इस मुकाम पर आ गया था कि मैं उसके बिना नहीं रह सकता था या यूं कहूँ कि मुझे उसकी हालत देखकर उसपर अत्यंत करुणा नहीं दया आ रही थी कि यहीं मांग भर दूँ और कलेजे में बैठाकर ले जाऊँ क्योंकि पता चला कि उसके बलात्कार की चर्चा न जाने कैसे लड़के वालों तक पहुँच जाती थी अतः जो भी देखने आता अपने घर पहुँच कर मना कर देता। मैं बड़ा दुखी हुआ। क्या करूँ ?
यहाँ मैं एक बात बिलकुल स्पष्ट कर दूँ कि मेरा प्यार बिलकुल एक तरफा था और वह मुझे सचमुच ही भाई मानती थी और सारा मोहल्ला या शहर जान गया था कि वह मुझे राखी बांधती है। इस मामले में उसे निःसन्देह चरित्र की देवी कहा जा सकता है। यदि वह ज़रा सा भी संकेत करती कि वह मुझसे पट सकती है या मुझे चाहती है तो मैं बिना देर किए उसे लपक लेता किन्तु ऐसा न हो सका और जैसा कि स्वाभाविक परिणाम होता है एक दिन वह बिना आत्महत्या किए अचानक दीर्घ बीमार होकर मर गयी किन्तु मैं जानता हूँ कि एक बलात्कार ने ही उसकी हँसती खेलती ज़िंदगी तबाह की थी बलात्कारियों को कैद नही फांसी ही होना चाहिए। जिस दिन उसकी अर्थी उठी उसके पापा का हार्ट फ़ेल हो गया और उसकी माँ इस दोहरे सदमे से पागल हो गई या ये भी कह सकते हैं कि मर सी गई परंतु बलात्कारी अब भी ज़िंदा हैं। मैं बार बार कहूँगा कि आरोप सिद्ध बलात्कारियों को फांसी से कम सज़ा होनी ही नहीं चाहिए।
उसके चले जाने के बाद मैं पूर्ववत हो गया यानी पहले भी मैं शादी नहीं करना चाहता था और अब तो सवाल ही नहीं उठता। सिर्फ यह बहुत अखरता है कि मैंने उससे प्यार किया जिससे प्यार करना एक अनैतिकता थी पाप था, यद्यपि मैंने कोई गड़बड़ नहीं की - न गड़बड़ी की कोशिश भी की बल्कि मैंने जितनी शिद्दत से उससे मिलना चाहा उतना ही उससे दूर रहने की कोशिश की - सिर्फ एक मुहबोले रिश्ते के नाते किन्तु इस मन का क्या करता जो शनैःशनैः उसे चाहने लगा था और मेरा मानना है कि जो बात मन मैं आ गयी उसे हुआ ही समझना चाहिए। मैंने स्वप्न में उसे कितनी बार पत्नी बनाया किन्तु यह मेरी महानता थी या कमजोरी कि मैंने कभी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। आज भी वह मेरे रोम-रोम में बसी है किन्तु एक बात ज़रूर कहूँगा कि हमें किसी अजनबी से ऐसे रिश्ते कदापि नहीं जोड़ने चाहिए जो इस स्वरूप को पाकर कलंकित हों।
मेरा वह परिचित मेरी नजरों में सिर्फ इसलिए बुरा नहीं है क्योंकि वह एक उफनता नवयुवा है और मैं फुल्ली मेच्योर्ड था अतः मैंने नियंत्रण कर लिया। उसे मौका मिला और वह उसे भुना रहा है। इश्क की आग कभी एक तरफा नहीं होती और जो होती है तो खुद को ही खाक करती है। मैंने सोचा उससे पूछा जाए क्या इरादा है ? सिर्फ मज़े लेकर छोड़ दोगे या मांग भी भरोगे ? क्योंकि उसका मामला राखी बीच में से निकाल दो तो सीधा प्रेम प्रकरण था जो विवाह में बदल सकता था किन्तु मेरे मामले में कोई गुंजाइश ही नहीं थी वरना एक बार तो मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि यदि वह मान गई तो मैं तत्काल उसे अपनी धर्म पत्नी बना लूँगा फिर चाहे दुनिया जो चाहे कहे करे। किन्तु वह बहुत ही भोली थी इस मामले में और उसने अपना बहन-धर्म बखूबी निभाया। कॉलेज में सदैव सर और घर पर भाई साहब, भाई साहब कहकर बुलाती रही और मानती रही।
मुझे तो उसने अचानक से भाई बना लिया था और मैं भी झट तैयार हो गया जबकि मेरे परिचित ने एक पूर्व योजना के तहत मुंहबोली को पटाया था अतः मैं उससे पूछ ही बैठा कल तो पिछवाड़े खूब मज़े ले रहे थे। मेरे भेद खोलने से वह थोड़ा सिटपिटा गया और मैंने उसे नार्मल करके विश्वास में लेकर सहयोग का वादा किया तो
वह मान गया , उसने सारी आंतरिक सच्चाई उगल दी जैसे अजगर अपने निगले हुए शिकार को। लगा तो मुझे बहुत बुरा उससे घृणा भी हुई किन्तु एक बात तय थी -जैसा तब मैंने महसूस किया कि वह उसे प्यार सचमुच में करता था और वह भी। इससे पहले की तीसरी रक्षाबंधन आए मैंने उसे इस शहर से कुछ साल के लिए गायब हो जाने के लिए कहा क्योंकि उसे मेरी नज़रों में स्वयं को सच्चा प्रेमी साबित करना था और समाज को राखी वाली बात को भूल जाने का मौका देना था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उसे रोजगार प्राप्त करना था। न जाने क्यों हमारे देश में जो कुछ भी नहीं करता वह ऐसे धंधों में ज़रूर और खूब फंसा रहता है। वह मान गया उसे भी मना लिया होगा वह भी तैयार थी किन्तु मैं नहीं चाहता था कि वे भागकर शादी करें ,और देखते ही देखते पूरे पाँच साल गुजर गए। वह कुछ काम करने लग गया और जब एक दिन मैंने उससे शादी की बात की तो पता चला कि अब वह उससे शादी नहीं करना चाहता , क्यों ,मैंने उसे खूब समझाया किन्तु वह अपनी ज़िद पर अड़ा रहा - जो लड़की ऐसी हो उसका क्या भरोसा ? मैंने कहा शुरुआत तो तुमने ही की थी। तो क्या उसे मान जाना चाहिए था उसने कहा ? मैं लाजवाब था। मैंने गलत समझा था कि वह उस लड़की से सचमुच प्यार करता है और तभी तो मैंने उन्हें मिलवाने की कोशिश की जबकि वास्तव में वहाँ पूर्णतः नासमझीगत यौनिक आकर्षण मात्र था। खैर मैंने उसे बिना भला बुरा कहे छोड़ दिया क्योंकि ऐसे चरित्रहीनों से और क्या अपेक्षा की जा सकती है।
मुझे थोड़ी चिंता सी हुई उस लड़की के बारे में। तो पता चला कि दो साल पहले ही उसकी शादी किसी बहुत बड़े खानदान में हो चुकी है किन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि मेरा परिचित उसकी शादी पर ईर्ष्या अथवा विरह से पीड़ित नहीं हुआ ज़रूर हुआ बल्कि उसने शादी बिगाड़ने की भरपूर कोशिश की किन्तु ठोस सबूतों के अभाव में उसे पीट-पाट के भागा दिया गया और लड़की ने उसे कसम खाकर अपने सगे भाई जैसा बताया तो सब मान गए और अंततः कोई लफड़ा नहीं हुआ और शादी सकुशल सम्पन्न हो गई। आज वह कुल मिलाकर बिलकुल सुखी है और इधर मेरा परिचित किसी और से चक्कर चला रहा है किन्तु इस बार उसने राखी का नहीं फ्रेंडशिप बेल्ट का सहारा लिया है अब देखना यह है कि उनका प्यार शादी की मंजिल तक पहुंचता है या नहीं।
मुझे एक बात आज तक समझ नहीं आई कि मेरे परिचित ने यह सब मुझे क्यों नहीं बताया और पूरे दो साल तक यह बात छुपाए रखी या हो सकता है कि उसने झूठ ही कहा हो अपनी इज्ज़त बचाने के लिए कि जो ऐसी लड़की हो उसका क्या भरोसाजबकि वह लड़की ही वांछित ,अवांछित किन्ही सार्थक ,निरर्थक कारणों से उसे रिजेक्ट कर चुकी थी और वह सचमुच उससे प्यार करता रहा हो वरना उसकी शादी में क्यों हंगामा करता ? जब बात नहीं बनी तो हार मान ली ? किन्तु क्या सच्चे प्रेमी यूं चुपचाप बैठ सकते हैं ? हत्या या आत्म हत्या उसने कुछ भी तो नहीं किया न ही किसी महान लक्ष्य का संकल्प लिया ? बस दूसरी लड़की पटाने में लग गया। शायद लमपट ही हो। खैर। मुझे क्या ? मैंने उससे नहीं पूछा बस अंदाजे ही लगाता रहा और सच मानता रहा। किन्तु मेरी रूह को अब भी सुकून नहीं है।
यद्यपि संसार में किसी को यह पता नहीं है कि मैं उससे प्रेम करता था किन्तु मैं सच कहता हूँ मुझे उससे प्यार करते हुए कभी आत्मग्लानि नहीं हुई। शुरू-शुरू में अवश्य दो-एक बार अनैतिकता बोध ग्रस्त हुआ किन्तु फिर वह दब गया और राखी पर मेरा इश्क ही हावी होता गया। कभी-कभी सोचता हूँ यदि राखी को भूल जाएँ तो क्या उसके प्रेम की आग में मेरा एक तरफा जलना गलत था जबकि वह मुझे प्यार नहीं करती थी ? यदि वह मुझे राखी नहीं बांधती तब क्या हमारी जान-पहचान प्यार में बदल सकती थी ? क्या राखी का धागा वाकई इतना मजबूत होता है कि उसके बंधन के साथ ही इश्किया जज़्बात पैदा ही नहीं होते या मर जाते हैं या मार दिये जाते हैं ? मेरे तो जन्मे और फिर लाख कोशिशों के बाद भी मैं उन्हे नहीं ही मार सका भले ही सामाजिक औपचारिकता के चलते अथवा सामाजिक भय के कारण उन्हे कभी प्रकट नहीं होने दिया तो क्या मजबूरीवश किए गए इतने त्याग मात्र को मनुष्यता माना जा सकता है ? पशुओं में रिश्तेदारी बोध नहीं होता इसलिए वे गाय से लेकर सुअर तक अनैतिक संबंध बनाते हैं अतएव वे क्षम्य हैं।
सोचता हूँ यदि मैं राखी की ओट में इश्क नहीं करता तो क्या उस परिचित को यूं ही अर्थात बिना जलील किए छोड़ देता या माफ कर देता ? यदि मैं उस लड़की से प्यार नहीं करता और वह मुझसे प्यार करने लगती और प्रकट भी कर देती तो क्या मैं भी तैयार हो जाता ? मैं तो अपना इजहारे मोहब्बत नहीं कर सका , कहीं वह भी तो केवल राखी के लिहाज वश दिल ही दिल में अनन्य प्यार करते हुए भी तो चुप नहीं पड़ी रही ? अत्यंत इज्ज़त तो वह मेरी स्टूडेंट होने के नाते भी करती हो सकती थी और मैं भी कोई बदसूरत नहीं बल्कि गबरू जवान था सिवाय इसके कि मैं रंगीन मिजाज या बातूनी या दिलचस्प आदमी नहीं था किन्तु इसका यह मतलब नहीं था कि मैं कोई ब्रह्मचारी या नपुंसक था बल्कि केवल सैद्धान्तिक कारणवश या फिर मैं खुद भी पक्का नहीं जानता , बस बचपन से ही शादी नहीं ही करना चाहता था या यूं भी कह सकता हूँ कि बंधन मुक्त रहना चाहता था , किसी भी प्रकार की कोई स्वातंत्र्य हननकारी ज़िम्मेदारी से बचा रहना चाहता था किन्तु आप इसे यह न समझिए कि छुट्टा सांड रहना चाहता था , सिर्फ शादी से मुझे अनजानी सी नफरत की हद पार करती चिढ़ सी थी।
उसकी मौत के बाद मैं बहुत से सवालों से घिरा रहता हूँ। अपनी इज्ज़त के पंचनामे से बचने के लिए किसी को कह भी नहीं सकता अतः स्वयं ही अपने सवालों के जवाब ढूँढता फिर रहा हूँ किन्तु क्या कोई सामाजिक और सार्वजनिक प्रश्न का मेरा अथवा किसी अन्य का वैयक्तिक उत्तर सर्वमान्य हो सकता है ? क्या मेरी तरह के लोगों को जम सकता है ? क्या इससे घोर अनैतिकता नहीं फैलेगी ? क्या राखी पर से विश्वास नहीं उठ जाएगा ? यदि मानलो वह मान भी जाती और हम एनी हाऊ शादी करके सुखी भी हो जाते तो क्या समाज हमें एक गलत परंपरा का संस्थापक नहीं मान लेता जबकि यदि देखा जाये तो शिक्षक तो समाज को सुसंस्कारित करने का माता-पिता के बाद सर्व प्रथम पूर्णकालिक-कर्तव्यस्थ अधिकारी होता है।
मैं भले ही न होऊँ किन्तु खुद को बड़ा ही सैद्धान्तिक व्यक्ति मानता हूँ और नैतिकता की दुहाइयाँ देते फिरता हूँ इसके बाद भी मैंने , भले ही मानसिक किन्तु स्वप्न तो अनैतिक देखे ही तो जो लोग रीढ़ विहीन हैं क्या वह मेरा उदाहरण दे देकर ( जबकि मैं एक बहुप्रतिष्ठित व्यक्ति हूँ और सच पूछा जाये तो अपनी इसी प्रतिष्ठा के रक्षार्थ ही मैं अंदर ही अंदर विलाप करते हुए बाहर हर हाल में खुश और खामोश बना रहा ) समाज में राखी की ओट में इश्क का धंधा नहीं शुरू कर देते ? अनंत काल तक जानने वाले मुझे धिक्कारते रहते और हम उनका सामना नहीं कर पाते , बाद को यही फूल सा कोमल संबंध पत्थर सा कठोर और भारी नहीं बन जाता ? जो हुआ अच्छा हुआ। बहुत दिनों से ठीक ढंग से सोया नहीं हूँ किन्तु अब सोना चाहता हूँ। क्या करूँ कब तक उसका वियोग झेलूँ ? ऐसे में कहीं किसी के सामने मुंह से सच्चाई न निकल जाये और हो सकता है मेरे साथ-साथ वह स्वर्गीया भी बदनाम हो जाये। नहीं नहीं मुझे ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। शादी पहले भी नहीं करनी थी अब तो और भी नहीं करनी किन्तु लोग पूछेंगे तो उसका एक निरुत्तर कर देने वाला जवाब ज़रूर तैयार रखना पड़ेगा। सोचता हूँ कहूँगा मैं शादी के योग्य ही नहीं किन्तु इससे तो मेरा इज्ज़त से जीना दुश्वार हो जाएगा हालांकि मैं उसके बगैर जीने से बेज़ार जैसा ही हूँ किन्तु कभी किसी वक्त अपनी घोर बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या करने में असफल हो जाने के बाद फिर कभी किसी भी हाल में आत्महत्या न करने की कसम खा ली थी अतः ख़ुदकुशी का तो सवाल ही नहीं उठता और जीने का भी कोई तर्क तो होना ही चाहिए कि नहीं ? मर के मशहूर होते हैं लोग और मैं ऐसी वाहियात और हास्यास्पद बातें करके अपनी फूल-फूल इज्ज़त को धूल-धूल करके मौत को भी बदनाम कर दूँगा ? शायद मैं पागल हो रहा हूँ , सिर फटा जा रहा है किन्तु स्साली नींद कोई गुलाम है जो पुकारते ही आ जाये ?
मेरी सोच विश्रंखलित हो रही है , कुछ समझ नहीं आ रहा है , कुछ और कहूँगा।
हाँ यह ठीक रहेगा, जब भी कोई पूछेगा मैं कहूँगा और बड़े अदम्य विश्वास से कहूँगा , आँखों में आँखें डालकर कहूँगा मैं समाज सेवा करना चाहता हूँ और अपना परिवार बनाकर मैं वह ईमानदारी से नहीं कर पाऊँगा क्योंकि मैं एक साधारण मनुष्य हूँ और अपने परिवार की खातिर लोग सम्झौता करते फिरते हैं, बीवियों की फर्माइशों, बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए भ्रष्टाचार करते फिरते हैं मुझे यह सब सख्त न पसंद है। मुझे भ्रष्टाचार से नफरत है। मैं इसे जड़ से मिटाना चाहता हूँ। यह विचार मुझे जम गया। सौ प्रतिशत जम गया। मुझे नींद आ गयी। मैं आज भी अविवाहित हूँ और किसी को आज तक मुझ पर शक नहीं हुआ कि मैं राखी की ओट मैं इश्क़ करने वाला महान समाज सेवी हूँ। यह तो बस मैं ही जानता हूँ कि मैं कितना महान हूँ किन्तु यह दावा है परम सच्चाई है कि अपने अनैतिक प्रेम ने ही मुझे इस महान सन्मार्ग पर डाला है। अपने मूलभूत खर्चों के अलावा अपना सारा वेतन मैं ज़रूरत मंदों में खर्च करता हूँ। मुझे बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी प्यार करते है और कल मेरा पचासवाँ जन्मदिन है जिसमें सब जश्न मनाएंगे मेरे घर आकर।

-डॉ. हीरालाल प्रजापति

6 comments:

Anonymous said...

sir aap jaise log bhitar se kuch bhi rakhen per ant me kuch acchi vastu me parivartit ho ker oobhregi. Kyun man ke bhitar deva sur sangram chal raha hota hai antardvand ke roop me lekin vijay sur ki hi hogi.... Aur ladki jivit rahti to ek na ek din aapki behen ke prem sacchi chanv hi apko mahsus hoti. =shekhar sagar facebook

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद !

Anonymous said...

Dr sahub,
Rakhi ki ot me ishq Bahut achhi lagi.Badi saralta se manke
antar dvad or virodhabhas ko urekkar sundar sa shabdchitra
banaya hai.Apa ki kahani pkchpat rahit rahkar sawabhavik manav manke anek bhavon ka chitran karti hai
Dhanabad

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद !

Unknown said...

atbhut..............
nice
good
Dil se...........

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! Sooraj Goswami जी !

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...