Sunday, January 27, 2013

20. ग़ज़ल : नाख़ुश मैं अपने.........


नाख़ुश मैं अपने आप से रहता हूँ आजकल अरे ।।
अच्छा हूँ ख़ुद को पर बुरा कहता हूँ आजकल अरे ।।1।।
 कल तक मैं सख़्त बर्फ़ की था इक सफ़ेद झील सा ,
नीली नदी की धार सा बहता हूँ आजकल अरे ।।2।।
 तूफ़ाँँ के वास्ते हिमालय की तरह था मैं कभी ,
पर रेत  के घरौंदों सा ढहता हूँ आजकल अरे ।।3।।
 अपनी ख़ुशामदों से मैं चिढ़ता था तह-ए-दिल से सच ,
सब गालियाँ भी प्यार से सहता हूँ आजकल अरे ।।4।।
 कैसे बदल गई मेरी तासीर सोचता हूँ मैं ?
'हीरा' हूँ फिर भी काँच से कटता हूँ आजकल अरे ।।5।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

3 comments:

Anonymous said...

very nice gajal

Anonymous said...

shabd heer tatha kanch ka istemal bahut sunder hai.

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद !

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