Tuesday, January 29, 2013

मुक्तक : 12 - आँख सैलाब इक



आँख सैलाब इक भरा सा है ।।
यों वो गुर्राये पर डरा सा है ।।
सिर्फ़ लगता है मस्त और ज़िंदा ,
सचमुच अंदर मरा मरा सा है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति


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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...