Wednesday, January 30, 2013

23. ग़ज़ल : इस कदर नीचता नंगपन



 इस क़दर नीचता नंगपन छोड़ दो।।
लूटलो सब कमजकम कफ़न छोड़ दो।।
इसमें रहकर इसी की बुराई करें ,
ऐसे लोगों हमारा वतन छोड़ दो।।
हो बियाबान के दुश्मनों रहम कुछ ,
यूँँ लहकते-महकते चमन छोड़ दो।।
उनकी ख़ातिर जो चिथड़े लपेटे फिरें ,
एक दो क़ीमती पैरहन  छोड़ दो।।
दम हो जाकर दिखाओ जलाकर उन्हें ,
उनके भूसे का पुतला दहन छोड़ दो।।
ले लो , ले लो मेरी जान तुम शौक़ से .
मैंने मर-मर जो जोड़ा वो धन छोड़ दो।।
नाम ही नाम हो ज़िन्दगी न चले ,
ऐसा हर शौक़ हर एक फ़न छोड़ दो।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

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