Wednesday, January 2, 2013

1. ग़ज़ल : उचकते-कूदते बंदर.............


उचकते-कूदते बन्दर सधी जब चाल चलते हैं ।।
मेरे जंगल के  हाथी मेंढकों जैसे  उछलते हैं ।।1।।
हिमालय पे भी जब राहत पसीने से नहीं मिलती ,
हथेली आग लेकर हम मरुस्थल को निकलते हैं ।।2।।
तुम्हारे हंस बगुले जब लगाएँ लोट काजल में ,
मेरे कौए बदन पे गोरेपन की क्रीम मलते हैं ।।3।।  
जमाते हो तुम आइसक्रीम को जब सुर्ख़ भट्टी में ,
मेरे बावर्ची भजिये बर्फ़ के पानी में तलते हैं ।।4।। 
वो चुल्लू भर ही पानी में कभी जब डूबने लगते , 
बचाने को उन्हें हम कूद पड़ने को मचलते हैं ।।5।।
थे होते मोम के पहले जो बह जाते थे अश्क़ों में ,
कि हों पत्थर के अब दिल जो न शोलों में भी गलते हैं ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...