उचकते-कूदते बन्दर सधी जब चाल चलते हैं ।।
मेरे जंगल के हाथी मेंढकों जैसे उछलते हैं ।।1।।
हिमालय पे भी जब
राहत पसीने से नहीं मिलती ,
हथेली आग लेकर हम
मरुस्थल को निकलते हैं ।।2।।
तुम्हारे हंस
बगुले जब लगाएँ लोट काजल में ,
मेरे कौए बदन पे
गोरेपन की क्रीम मलते हैं ।।3।।
जमाते हो तुम
आइसक्रीम को जब सुर्ख़ भट्टी में ,
मेरे बावर्ची
भजिये बर्फ़ के पानी में तलते हैं ।।4।।
वो चुल्लू भर ही पानी में कभी जब डूबने लगते ,
बचाने को उन्हें हम कूद पड़ने को मचलते हैं ।।5।।
थे होते मोम के पहले जो बह जाते थे अश्क़ों में ,
कि हों पत्थर के अब दिल जो न शोलों में भी गलते हैं ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
थे होते मोम के पहले जो बह जाते थे अश्क़ों में ,
कि हों पत्थर के अब दिल जो न शोलों में भी गलते हैं ।।6।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति
2 comments:
khoob
धन्यवाद ! sndeep shrma जी !
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