Thursday, January 24, 2013

16. ग़ज़ल : मुझको हैरत है......



मुझको हैरत है यह हुआ कैसे ?
ग़मज़दा खिलखिला रहा कैसे ?
बन गया साँप केंचुआ जैसा ,
लोमड़ी बन गई गधा कैसे ?
जब था मैं उसकी जाँ तो हैराँ हूँ ,
मैं मरा तो न वो मरा कैसे ?
इंसाँँ , इंसाँँ नहीं रहा बाक़ी ,
उसको तुम कह रहे ख़ुदा कैसे ?
जो अकड़ता था रब के भी आगे ,
आगे बन्दे के वो झुका कैसे ?
जो न चपरास के भी था क़ाबिल ,
आला अफ़सर वो फिर बना कैसे ?
लोग उस रोग से मरें सब ही ,
वो मरा साफ़ बच गया कैसे ?
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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