Saturday, January 26, 2013

19. ग़ज़ल : मुझमें ख़ूब बचा है................


मुझमें ख़ूब बचा है अब भी , 
मुझको यार चुका मत समझो ॥
राख तले हूँ लाल धधकता , 
इक अंगार बुझा मत समझो ।।1।।
यूँ अंदाज़-ए-जिस्म को तक तक , 
क्या-क्या तुम अंदाज़ लगाते ,
थपको मुँँह पर छींटे मारो , 
हूँ बेहोश मरा मत समझो ।।2।।
अर्श से गिरकर बोलो भला क्या , 
बच सकता है कोई धरा पर ,
गर मैं फिर भी ठीक-सलामत , 
हूँ तो इसको करामत समझो ।।3।।
लड़-लड़कर दुश्मन से मर 
जाने का फ़ख़्र करे जावेदाँ ,
जान बचाकर भाग आने को , 
इक मक्रूह क़यामत समझो ।।4।।
हिन्दू को बस बोलो हिन्दू , 
मत बामन या शूद्र पुकारो ,
मानो मुसल्मानों को मुसल्माँ , 
सुन्नी और शिया मत समझो ।।5।।
पूजो तो ख़ुश हो जो न पूजो , 
तो दे दे जो श्राप हमें झट ,
बुत हो या वो ग़ैर मुजस्सम , 
उसको कोई ख़ुदा मत समझो ।।6।।
( करामत = चमत्कार ; जावेदाँ = अमर ; मक्रूह = घ्रणास्पद ; क़यामत = मृत्यु ; बुत = मूर्ति ; ग़ैर मुजस्सम = निराकार )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

5 comments:

Kirti Vardhan said...

मुझमें ख़ूब बचा है अब भी मुझको यार चुका मत समझो ॥
रख तले हूँ लाल धधकता इक अंगार बुझा मत समझो ॥

behtarin mitr..vahvah

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आ. कीर्ति वर्धन जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !

Unknown said...

यथार्थ बयाँ करती **इन्सानियती मजहब का***बधाई

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! gope mishra जी !

Unknown said...

NICE , VERY NICE ; SINCERE APPEAL

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