Wednesday, January 30, 2013

22 : ग़ज़ल - रहने दो सबको अपने


रहने दो सबको अपने अपने मुगालतों में ।।
जो ख़्वाबों में मज़ा है , क्या है हक़ीक़तों में ?1।।
नाँ चाहकर भी अच्छा , अच्छाई भूल जाये ,
ऐ नाज़नींं न ऐसे पेश आ तू खल्वतों में ।।2।।
अच्छाई पर भी तेरी , अच्छा न कह सकेंगे ,
मिलता है इक मज़ा सा , जिनको शिकायतों में ।।3।।
उनका अजब है धंधा , साँसे उखाड़ने का ,
फिर आ के ख़ुद ही देना , काँँधा भी मय्यतों में ।।4।।
पत्थर में देवता की , सूरत तराश ली है ,
किसको है फ़िक्र असर की , अपनी इबादतों में ?5।।
बदशक्लों की उड़ाना , मत तुम हँसी हसीनों ,
कितनों ने ली है ख़ुद की , जाँ इन शरारतों में ।।6।।
आपस में ही सुलझ लो , अद्ना मुआमला है ,
इक उम्र होती लाज़िम , अपनी अदालतों में ।।7।।
मिलता कहाँ सुकूत अब , शहरों के बीच क़ाइम ,
( ) स्कूलों , अस्पतालों , मंदिर औ' मरघटों में ?8।।
( सुकूत = मौन )
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Unknown said...

लाजवाब अन्दाज-ए-बयाँ

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! gope mishra जी !

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