Sunday, January 27, 2013

मुक्तक : 8 - सर्दियों में ज्यों सुलगती


सर्दियों में ज्यों सुलगती लकड़ियाँ अच्छी लगें ॥
जैसे हँसती खिलखिलाती लड़कियाँ अच्छी लगें ॥
मुझको मौसम कोई हो जलता-जमाता-भीगता ,
बंद कमरे की खुली सब खिड़कियाँ अच्छी लगें ॥
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...