Saturday, January 12, 2013

5. ग़ज़ल : इक हथकड़ी सा.................



इक हथकड़ी सा काँँच का कंगन लगा मुझे ।।
आज़ादियों का तोहफ़ा बंधन लगा मुझे ।।1।।
इस तरह साफ़ हो रहे हैं पेड़ शह्र से ,
दो गमले क्या दिखे कहीं गुलशन लगा मुझे ।।2।।
तनहाई दूर होगी ये आया था सोचकर ,
मेले में और भी अकेलापन लगा मुझे ।।3।।
जब तक ग़रीब था कमाई में लगा रहा ,
सबसे बुरा ,अमीर बन ; बस धन लगा मुझे ।।4।।
बच्चों के सच में आजकल हैं तौर इस तरह ,
बचपन में एक ख़ास बूढ़ापन लगा मुझे ।।5।।
माँ की अलोनी रोटियों में भी जो स्वाद था ,
होटल का चटपटा भी ना भोजन लगा मुझे ।।6।।
पत्थर भी देखता पिसा जब भूखे पेट मैं ,
आटा लगा कभी , कभी बेसन लगा मुझे ।।7।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति

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