Thursday, January 17, 2013

9. ग़ज़ल : हर वक़्त न बनकर




  हर वक़्त न बनकर राम रहो ।। 
मौक़ा-मौक़ा घनश्याम रहो ।।
पानी भी रहो शर्बत भी रहो ,
कभी चाय कभी-कभी जाम रहो ।।
दहलीज़ पे मंदिर-मस्जिद की ,
गर ख़ास रहो ; पर आम रहो ।।
बरगद का गर्मी में  साया ,
सर्दी में अलाव या घाम रहो ।।
जब देखो बबूल या नागफणी ,
कभी गुल , गुलशन , गुलफ़ाम रहो ।।
कोशिश न कभी अपनी छोड़ो ,
गर बाज़  दफ़ा नाकाम रहो ।।
बदनाम किसी क़ीमत पे न हों ,
जितना चाहे गुमनाम रहो ।।
जीना न अगर हो तो बेशक़ ,
ग़मगीन ही सुब्होशाम रहो ।।
औरों के रहो जी भर मालिक ,
बनकर अपनों के ग़ुलाम रहो ।।
यारों को रहो जीने की ख़बर ,
दुश्मन को क़ज़ा का पयाम रहो ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

2 comments:

Sanjeev Mishra said...

हर वक़्त न बनकर राम रहो।।
मौका मौका घनश्याम रहो।।
.........................बहुत सुन्दर...बहुत खूब.......लाजवाब..........:)

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

बहुत-बहुत धन्यवाद ! Sanjeev Mishra जी !

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