Saturday, January 19, 2013

11. ग़ज़ल : किसी बात का कब......................


किसी बात का कब बुरा मानता हूँ  ।।
तुझे तो मैं अपना  ख़ुदा मानता हूँ ।।1।।
मेरी कामयाबी का क्या राज़ खोलूँ ,
इसे तो मैं तेरी दुआ मानता हूँ ।।2।।
मेरा तू जो चाहे वो हँसकर उठाले ,
मेरा तो मैं सब कुछ तेरा मानता हूँ ।।3।।
जो मैं चाहता हूँ वो सब कुछ है तुझमें ,
तुझे अपनी ख़ातिर बना मानता हूँ ।।4।।
नया कुछ नहीं है तेरा मेरा मिलना ,
ये जन्मों का मैं सिलसिला मानता हूँ ।।5।।
भले दूर से दूर भी तू है लेकिन ,
मैं कब ख़ुद को तुझसे जुदा मानता हूँ ।।6।।
मिलो मत मिलो इसकी पर्वा करूँ कब ,
दिल-ओ-जाँ तुझे जब दिया मानता हूँ ।।7।।
तेरी बेनियाज़ी को तेरी क़सम है ,
मैं पर्वा की ही इंतिहा मानता हूँ ।।8।।
बेनियाज़ी=उपेक्षा  )
  -डॉ. हीरालाल प्रजापति 

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने...!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

हम भी प्रजापति ही हैं मान्यवर..!

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

धन्यवाद ! डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी !

डॉ. हीरालाल प्रजापति said...

आप भी प्रजापति हैं जानकर खुशी हुई........डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी !

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