Saturday, January 26, 2013

मुक्तक : 6 - कि जैसे आपको नीर


कि जैसे आपको नीर अपने घर का क्षीर लगता है ।।
ज़रा सा पिन किसी सुल्तान की शम्शीर लगता है ।।
तो फिर मैं क्या ग़लत कहता हूँ मुझको शह्र गर अपना ,
भयंकर गर्मियों में वादी-ए-कश्मीर लगता है ।।
-डॉ. हीरालाल प्रजापति 

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मुक्तक : 948 - अदम आबाद

मत ज़रा रोको अदम आबाद जाने दो ।। हमको उनके साथ फ़ौरन शाद जाने दो ।। उनसे वादा था हमारा साथ मरने का , कम से कम जाने के उनके बाद जाने दो ...